दृष्टि आईएएस ब्लॉग

संपूर्ण मानव समाज की बुनियादी ज़रूरतों की पूर्ति करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में ऊर्जा एक इंजन का कार्य करती है। हम जानते हैं कि जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ ऊर्जा की मांग भी बढ़ती जा रही है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2040 तक देश में बिजली की खपत 1280 टेरावाट प्रति घंटा हो जाएगी। ऐसे में सीमित जीवाश्म-ईंधन आधारित ऊर्जा स्रोत हमारी भविष्य की इस मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। देश की बढ़ती ज़रूरतों की पूर्ति हेतु ऊर्जा के नवीकरणीय संसाधनों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत से तात्पर्य ऐसे स्रोतों से है जो उपयोग के साथ समाप्त नहीं होते हैं, ये प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं और जिनकी खपत की तुलना में पुनःभरण की उच्च दर होती है। आम नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में सौर, पवन, भूतापीय, पनबिजली, महासागर और जैव ऊर्जा शामिल हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा की आवश्यकता क्यों?

अगर देखा जाए तो पिछले 150 वर्षों से जीवाश्म ईंधन संपूर्ण विश्व की अर्थव्यवस्थाओं को शक्ति प्रदान कर रहे हैं और यह वर्तमान में विश्व की लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा की आपूर्ति का प्रमुख स्रोत भी है। ऐसे में इसका जिस खतरनाक दर से उपभोग किया जा रहा है उससे स्पष्ट है कि निकट भविष्य में वे अवश्य ही समाप्त हो जाएंगे और यह भी सच है कि इन्हें अल्पकाल में पुनः प्राप्त करना संभव नहीं है।

जीवाश्म ईंधन से ग्रीनहाउस गैस, जैसे- मिथेन और कॉर्बन डाइऑक्साइड आदि का उत्सर्जन होता है, जो पर्यावरण के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन व मानव जीवन के लिये भी हानिकारक है। WHO की मानें तो दुनियाँ में लगभग 99 प्रतिशत लोग जिस हवा में साँस लेते हैं, वह वायु गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतरती है तथा विश्व में प्रतिवर्ष 13 मिलियन से अधिक मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं।

आँकड़ों के अनुसार, विश्व की लगभग 80 प्रतिशत आबादी उन देशों में है जो जीवाश्म ईंधन के शुद्ध आयातक हैं। इसकी वजह से वे भू-राजनीतिक जोखिमों का सामना करते हैं। इसे रूस-यूक्रेन युद्ध के समय मूल्य अस्थिरता, आपूर्ति की कमी, आर्थिक अनिश्चितता व सुरक्षा मुद्दों आदि रूपों में देखा व महसूस किया गया।

वर्तमान में जीवाश्म ईंधन का निष्कर्षण व परिवहन अत्यंत जोखिमपूर्ण हो गया है, जिससे तेल रिसाव, श्रमिकों के जीवन तथा तेल की कीमतों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

गौरतलब है कि भारत विश्व का सबसे अधिक आबादी वाला देश है तथा भारत स्वयं के इस्तेमाल किये जाने वाले कच्चे तेल का 85 प्रतिशत और अपनी प्राकृतिक गैस की आवश्यकता का 54 प्रतिशत आयात करता है। इस कारण भारत की अर्थव्यवस्था जीवाश्म ईंधन की कीमतों में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव से प्रभावित भी होती रहती है।

ऐसे में जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक प्रयोग ने न केवल भारत को बल्कि विश्व के कई देशों को कुछ विशेष देशों पर निर्भर भी बना दिया है। इसने विश्व में जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं को भी बढ़ाया है जिससे एक ही समय में देश के कुछ क्षेत्रों में भीषण बाढ़ तो कुछ इलाकों में अत्यधिक गर्मी की स्थिति देखी जाती है।

इस प्रकार भारत सहित विश्व भर में ऊर्जा संकट गहरा रहा है। साथ ही जीवाश्म ईंधन से पर्यावरण भी प्रदूषित हो रहा है। पारंपरिक संसाधनों से प्राप्त होने वाली बिजली की कीमतें लगातार बढ़ने और विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता पैदा होने के परिणामस्वरूप अब अक्षय ऊर्जा (रिन्यूएबल एनर्जी) या हरित ऊर्जा (ग्रीन एनर्जी) की मांग बढ़ती जा रही है।

नवीकरणीय ऊर्जा : संभावनाएँ-

भारत अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण नवीकरणीय ऊर्जा का उचित लाभ उठाने में सक्षम है।अगर देखा जाए तो भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय है तथा इसके पास विशाल समुद्र तट भी है, जिसके चलते भारत में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ज्वारीय ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के विविध स्वरूपों के विकास की अपार संभावनाएँ हैं।

1- सौर ऊर्जा-

नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के अनुसार, भारत के भूमि क्षेत्र में प्रतिवर्ष 5000 ट्रिलियन-घंटे ऊर्जा प्राप्त होती है और अधिकांश भाग प्रतिदिन 4-7 किलोवाट-घंटे प्रति वर्ग मीटर ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इसे फोटोवोल्टिक सेल के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। पूरे देश की बिजली की आवश्यकता की पूर्ति के लिये कुल प्राप्त सौर ऊर्जा का एक छोटा सा हिस्सा ही पर्याप्त है। राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान के अनुमान के अनुसार, 3 प्रतिशत बंजर भूमि क्षेत्र को सौर फोटोवोल्टिक मॉड्यूल से कवर किये जाने से लगभग 748 गीगावाट बिजली उत्पन्न हो सकती है। जो भारत सरकार द्वारा लक्षित 100 गीगावट से कहीं अधिक है।

"सौर ऊर्जा न केवल वर्तमान में बल्कि 21वीं सदी में ऊर्जा ज़रूरतों का एक प्रमुख स्रोत बनने जा रही है क्योंकि सौर ऊर्जा निश्चित, शुद्ध और सुरक्षित है।" - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

2- पवन ऊर्जा-

राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (NIWE) द्वारा किये गए अध्ययन से ज्ञात होता है कि सात राज्यों- गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में पवन से बिजली उत्पादन की महत्त्वपूर्ण क्षमता है। भूमि सतह से 100 मीटर ऊपर (AGL) इन सात राज्यों की पवन ऊर्जा क्षमता 293 गीगावाट है और 120 मीटर AGL पर क्षमता 652 गीगावाट है। जो भारत सरकार द्वारा लक्षित 60 गीगावाट से कहीं अधिक है। ऐसे में सरकार त्वरित मूल्यह्रास लाभ के माध्यम से निवेश को प्रोत्साहित करके पवन ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा दे रही है।

अगर देखा जाए तो 7500 किमी. लंबी तटरेखा का प्राकृतिक लाभ होने के कारण भारत में अपतटीय पवन ऊर्जा का दोहन करने की अपार क्षमता है। इस अपार संभावना का लाभ उठाने हेतु भारत सरकार ने वर्ष 2015 में राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति को अधिसूचित किया, जिसका प्राथमिक उद्देश्य देश के विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) में अपतटीय पवन ऊर्जा अवसंरचना में निवेश को प्रोत्साहित करना है।

3- पनबिजली-

केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) द्वारा किये गए आकलन के अनुसार, भारत में 1,48,700mw की आर्थिक रूप से दोहन योग्य पनबिजली क्षमता है। यदि 94,000mw के पंप स्टोरेज की संभावित क्षमता में छोटी, लघु और सूक्ष्म जल विद्युत परियोजनाओं से लगभग 6700mw की संभावित क्षमता को शामिल किया जाए तो भारत की जलविद्युत क्षमता लगभग 2,50,000mw होगी। ऐसे में देखा जाए तो लंबे समय तक टिके रहने, कम लागत और उच्च दक्षता के साथ-साथ कई अन्य लाभों के बावजूद वर्तमान में इसके 30 प्रतिशत से भी कम का दोहन किया गया है। ऐसे में इसका समुचित दोहन कर 5 गीगावाट से कहीं अधिक नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।

4- जैव ईंधन-

वर्तमान समय में इथेनॉल और बायोडीज़ल उपयोग में आने वाले सबसे प्रमुख जैव ईंधन में से हैं। इस दिशा में भारत सरकार जैव-ईंधन पर राष्ट्रीय नीति-2018 के माध्यम से सकारात्मक प्रयास भी कर रही है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत और डीज़ल में 5 प्रतिशत मिश्रण के लक्ष्य के साथ जैव ईंधन के प्रसार में गति लाना है। ऐसे में जैव-ईंधन तेल आयात पर निर्भरता और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के साथ ही किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करने तथा ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने में सहायक हो सकता है।

5- हरित हाइड्रोजन-

यह एक स्वच्छ ऊर्जा स्रोत है जो पवन, सौर और जलविद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करके जल के विद्युत-अपघटन (इलेक्ट्रोलिसिस) के माध्यम से उत्पादित किया जाता है। इस दिशा में ऊर्जा की अपार संभावनाओं को देखते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2021 में भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का शुभारंभ किया गया। इसका उद्देश्य भारत को एक 'हरित हाइड्रोजन हब' बनाना है जो वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन हरित हाइड्रोजन के उत्पादन और संबंधित नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता के विकास के लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा।

6- महासागर और भूतापीय ऊर्जा-

जैसा कि हम सब जानते हैं कि महासागर धरातल का 70 प्रतिशत भाग घेरे हुए हैं और ज्वार ऊर्जा, तरंग ऊर्जा, थर्मल ऊर्जा आदि रूप ऊर्जा की एक विशाल राशि का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे समुद्र और महासागरों की ऊर्जा क्षमता हमारी वर्तमान ऊर्जा आवश्यकताओं से कहीं अधिक है। आँकड़ों के अनुसार, ज्वारीय और तरंग ऊर्जा के लिये अनुमानित ऊर्जा क्षमता क्रमशः 12,455mw और 41,300mw है। ऐसे में इन ऊर्जा स्रोतों के इष्टतम दोहन हेतु विभिन्न तकनीकों का विकास किया जा रहा है।

जबकि भूतापीय ऊर्जा पृथ्वी के भू-पृष्ठ में संग्रहित ऊष्मा के स्रोत के रूप में होती है, जो सतह पर गर्म स्रोतों के रूप में निकलती है। भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने अनुमान लगाया है कि भू-तापीय ऊर्जा से संभावित 10 गीगावाट बिजली क्षमता का दोहन किया जा सकता है।

इस दिशा में भारत सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास-

भारत सरकार ने वर्ष 2070 तक नेट-ज़ीरो कार्बन उत्सर्जन तथा वर्ष 2030 तक भारत की अक्षय ऊर्जा स्थापित क्षमता 500 GW तक विस्तारित करने का लक्ष्य रखा है। जिसे प्राप्त करने तथा नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने हेतु सरकार द्वारा कई प्रयास किये जा रहे हैं, जैसे- राष्ट्रीय बायोगैस और खाद्य प्रबंधन कार्यक्रम, सूर्यमित्र कार्यक्रम, सौर ऋण कार्यक्रम, PM-कुसुम योजना, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना, सौर पार्क योजना, केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (CPSU) योजना, हाइड्रोजन मिशन, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन तथा बजट 2022-23 में भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऊर्जा दक्षता, विद्युत गतिशीलता, भवन निर्माण दक्षता, ग्रिड से जुड़े ऊर्जा भंडारण और हरित बॉण्ड के लिये कई घोषणाएँ कीं जो नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन देने में अहम भूमिका निभाएंगी।

ऐसे में अक्षय ऊर्जा में आत्मनिर्भरता भारत की आर्थिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये भी अहम है। आज आवश्यकता है कि भारत दूसरे देशों के लिये अक्षय ऊर्जा उपकरणों की आपूर्ति का एक स्रोत बने। उपर्युक्त विवरणों के आधार पर यह कहना अतिशयक्ति नहीं होगा कि यह क्षमता भारत में सुनिश्चित की जा सकती है और इसका व्यापक लाभ हम कई आयामों के माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं। जैसे-

लाभ-

*नवीकरणीय ऊर्जा पर्यावरण के अनुकूल होती है तथा इसमें न्यूनतम या लगभग शून्य कार्बन व ग्रीनहाउस उत्सर्जन होता है। जबकि इसके विपरीत जीवाश्म ईंधन ग्रीनहाउस गैस और कार्बन डाइऑक्साइड का काफी अधिक उत्सर्जन करते हैं।

*नवीकरणीय संसाधनों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा असीमित होती है। इसलिये इसे ऊर्जा का स्थायी स्रोत भी माना जाता है, जबकि जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त होने वाली ऊर्जा के स्रोत सीमित मात्रा में उपलब्ध हैं।

*नवीकरणीय ऊर्जा रोज़गार सृजन में भी सहायक है। काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 1,00,000mw सौर ऊर्जा और 60,000mw पवन ऊर्जा क्षमता विकसित करने के लक्ष्य से लगभग 13 लाख (1.3 मिलियन) प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होंगे।

*नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग ऊर्जा के स्रोत के रूप में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को भी कम करेगा। इससे वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की कीमतों में काफी स्थिरता भी आएगी।

*WHO की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में खाना पकाने में जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल की वजह से हर साल 5 लाख मौतें हो रही हैं। ऐसे में अक्षय ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देकर मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाया जा सकता है।

*WHO की रिपोर्ट के अनुसार, अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने से महिला सशक्तीकरण व लैंगिक समानता (SDG-5) में भी वृद्धि देखने को मिली है।

*अक्षय ऊर्जा स्रोत ही भविष्य के ऊर्जा संसाधन हैं जो किसी भी राष्ट्र के धारणीय विकास ( SDG-7- स्वच्छ एवं वहनीय ऊर्जा) को सुनिश्चित करेंगे। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियाँ निरंतर बढ़ती जा रही हैं। अगर देखा जाए तो भारत पवन ऊर्जा क्षमता व सौर ऊर्जा क्षमता में चौथे स्थान पर है। देश में नवंबर 2022 तक गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से कुल 42 प्रतिशत ऊर्जा उत्पादन की क्षमता हासिल की जा चुकी है और इस दिशा में सरकार निरंतर आवश्यक कदम भी उठा रही है। बावजूद इसके इस क्षेत्र में कुछ चुनौतियाँ भी हैं, जो अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक बन रही हैं।

चुनौतियाँ-

*नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भारत में अभी भी नए अनुसंधान, आधुनिक विकास सुविधाओं तथा बुनियादी ढाँचे की कमी है।

*भारत, नवीकरणीय ऊर्जा के उपकरण अनिवार्य रूप से चीन, जर्मनी आदि देशों से आयात करता है। ऐसे में "प्रणाली लागत" में वृद्धि की समस्या इस दिशा में एक गंभीर चुनौती है।

*शुरुआत में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की स्थापना हेतु निवेश की आवश्यकता होती है। ऐसे में अत्यधिक निवेश की आवश्यकता संस्थाओं तथा आम जनमानस दोनों को हतोत्साहित करती है।

*हमारे देश में अधिकांशतः अच्छी योजनाएँ राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति के अभाव में दम तोड़ देती हैं। ऐसे में इस दिशा में भी भूमि अधिग्रहण की समस्या, सरकारी अनुमोदन मिलने में देरी,सामग्री आपूर्ति सीमा आदि प्रमुख चुनौतियाँ हैं।

*अक्षय ऊर्जा हेतु आज भी हमारे देश के बैंकों में सुविधाजनक ऋण सुविधा का अभाव है, जिसके कारण इसका लाभ आम जनमानस आसानी से नहीं प्राप्त कर पा रहा है।

*इस संदर्भ में आज भी आम जनमानस के बीच जागरूकता की कमी है, जिसके कारण अक्षय ऊर्जा को अपनाने की गति धीमी है।

ऐसे में उपर्युक्त चुनौतियों को दूर करने के साथ ही ग्रीन फाइनेंसिंग एक्सप्रेस, हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित वाहन और इलेक्ट्रिक वाहन तथा राज्यों के बीच आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों को कम करने और अक्षय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने हेतु लोगों, परिवारों, समुदायों, संगठनों, सरकार और अन्य हितधारकों को प्रासंगिक स्तरों पर शामिल किया जाना चाहिये ताकि इस दिशा में व्यापक परिवर्तन लाया जा सके।

इस प्रकार दुनिया की लगातार बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये अक्षय ऊर्जा संसाधनों का उपयोग समय की मांग है और यह अनिवार्य भी है कि अधिकांश नई ऊर्जा की मांग को नवीकरणीय स्रोतों से पूरा किया जाए।

"अब समय आ गया है कि हम अपने ग्रह को जलाना बंद करें और अपने चारों ओर प्रचुर नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश करना शुरू करें।" (एंटोनियो गुटेरेस, UN महासचिव)

अंकित सिंह

अंकित सिंह उत्तर प्रदेश के अयोध्या ज़िले से हैं। इन्होंने यूपीटीयू से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन में स्नातक तथा हिंदी साहित्य व अर्थशास्त्र में परास्नातक किया है। वर्तमान में दिल्ली स्कूल ऑफ सोशल वर्क (डीयू) से सोशल वर्क में परास्नातक कर रहे हैं तथा सिविल सर्विसेज़ की तैयारी करने के साथ ही विभिन्न वेबसाइट्स के लिये ब्लॉग लिखते हैं।